Ashtadhyaayi
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पाणिनि-विरचिता
अष्टाध्यायी
(पदच्छेद-वृत्ति वार्तिक-टिप्पणी-सहित)
म. म. पण्डितराज श्रीगोपालशास्त्री ‘दर्शनकेशरी’
Description
पाणिनि-विरचिता
अष्टाध्यायी
(पदच्छेद-वृत्ति वार्तिक-टिप्पणी-सहित)
म. म. पण्डितराज श्रीगोपालशास्त्री ‘दर्शनकेशरी’
- विद्या देवी ब्राह्मणके पास आकर बोली कि मैं तुम्हारी निधि हूँ, मेरी रक्षा करो। जो तुमसे डाह रखता हो, जो सीधा न हो, टेढा चलता हो और अपनी इन्द्रयोको वशमें न रखता हो, उसको मुझे मत देना। तभी मैं, सुर क्षित रह सकती हूँ, और वीर्यवती हूँ” ॥ १ ॥
- आज पाणिनि-पद्धति दुर्लभ है। उसे बतानेवाले विद्वान् भी दुर्लभ ही हैं।
- उससे लोक-वेद दोनों शब्द सिद्ध होते हैं ॥ २ ॥
- प्रस्तुत पदच्छेद– वृत्तिसहित अष्टाध्यायी ग्रन्थ ( अष्टाध्यायी सूत्रपाठ) जिसे अष्टक भी कहते हैं, इतना वैज्ञानिक है कि क्रमसे इसे पढ़नेवाला छात्र शिष्टताके साँचेमें अपने आप ढल जाता है। यह कहकर नहीं बताया जा सकता। इसे तो पढ़नेवाला ही अनुभव कर सकता है। मन्दिर बनानेवाला शिल्पी एक दिन मन्दिरके शिखर पर ही जा बैठता है।
Additional information
Weight | 140 g |
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