Bhasha Vigyan & Bhasha Shastra

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भाषा – विज्ञान एवं भाषा शास्त्र

लेखक: डॉ. कपिलदेव द्धिवेदी

भाषाविज्ञान और भाषाशास्त्र को शिरःशूलकर समझा जाता है

‘भाषा विज्ञानमेतद् हि शिरःशूलकरं परम्’, ‘भाषाशास्त्रं व्याधिकरम्’।

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Description

भाषा – विज्ञान एवं भाषा शास्त्र

लेखक: डॉ. कपिलदेव द्धिवेदी
  • ग्रन्थ लेखन का उद्देश्य मैं १६४४ ई० से अब तक भाषाविज्ञान विषय के अध्ययन और अध्यापन काल में यह अनुभव करता रहा हूँ कि हिन्दी भाषा में भाषाशास्त्र विषय पर प्रामाणिक एवं सुरुचिपूर्ण ग्रन्थों का अभाव है।
  • स्नातकोत्तर कक्षाओं के अध्यापन में अध्यापकों को भी अंग्रेजी में लिखी हुई पुस्तकों का ही आश्रय लेना पड़ता है।
  • राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी के प्रतिष्ठित होने पर भी प्रामाणिक एवं सर्व विषयावगाही भाषाशास्त्र की पुस्तकों का हिन्दी में अभाव निरन्तर हृदय को पीडित कर रहा था। इसी अभाव की पूर्ति के लिए यह तुच्छ प्रयत्न किया गया है।
  • आशा है भाषाशास्त्र के प्रेमी अध्यापकों, विद्वानों एवं अध्येताओं का इससे मनस्तोष होगा।
  • व्याकरण को व्याधिकारक ‘व्याकरणं व्याधिकरणम्’ कहा जाता है।
  • इसी प्रकार भाषाविज्ञान और भाषाशास्त्र को शिरःशूलकर समझा जाता है— ‘भाषा विज्ञानमेतद् हि शिरःशूलकरं परम्’, ‘भाषाशास्त्रं व्याधिकरम्’।
  • विषय को अरुचिकर या नीरस ढंग से प्रस्तुत करना ही इसका प्रमुख कारण है। मैंने प्रयत्न किया है कि इस कठिन विषय को सरल, सुबोध और रोचक ढंग से प्रस्तुत किया जाए।
  • मुझे पूर्ण विश्वास है कि कोई भी व्युत्पन्न अध्येता एक बार इस ग्रन्थ को आद्योपान्त पढ़ने पर लेखक की इस उक्ति का समर्थन करेगा।

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