Kumar sambhavam – Mahakavyam

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कुमारसम्भवं-महाकाव्यम् 

‘सञ्जीविनी’ ‘सरला’ द्वयोपेतम्

व्याख्याकारः 
डॉ. राजू (राजेश्वर ) शास्त्री मूसलगाँवकर

महाकविकालिदासविरचितं

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Description

  • कुमारसम्भवं-महाकाव्यम् (प्रथमः सर्गः)
  • ‘सञ्जीविनी’ ‘सरला’ द्वयोपेतम्
व्याख्याकारः 
डॉ. राजू (राजेश्वर ) शास्त्री मूसलगाँवकर

महाकविकालिदासविरचितं

  • संस्कृत काव्येतिहास में अम्लान प्रतिभाशाली कविकुलगुरु महाकवि कालिदास का मूर्धन्यस्थान है । इनको नवनवोन्मेषशालिनी सर्वोत्कृष्ट प्रतिभाने अखिल विश्वको आश्चर्यचकित कर दिया है। वस्तुतः वे प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक-इतिहास की अन्तरात्मा के प्रतिनिधि कवि हैं।
  • कविकुलगुरु कालिदास की लोकप्रियता इसी तथ्य से स्पष्ट हो जाती है कि साहित्य के चुचुविद्वानों ने उन्हें ऐसी एकाधिक उपाधियों’ से विभूषित कर दिया है, जो अद्ययावत् विश्व में किसी कवि को प्राप्त न हो सकी। इनकी उपलब्ध ८ रचनाओं में ‘रघुवंश’ महाकाव्य का प्रमुख स्थान है। तदनंतर कुमार संभव का, इसमें कालिदास की सुपरिपक्व एवं प्रौढ़ प्रतिभा का परिचय मिलता है। ‘रघुवंश’ महाकाव्य की प्रासादिक एवं मनोरम शैली से आकृष्ट होकर ही काव्य समीक्षाकों ने इन्हें ‘रघुकार’ के नाम से अभिहित किया है और उद्घोषित किया है— “क इह रघुकारे न रमते” मनुप्रोक्त भारतीय संस्कृति की समुचित परिचिति देनेवाले इन काव्यों को प्रबन्धकुशलता एवं जीवन के उदात्त आदर्शों से समन्वित चरित्रों को अंकित करने की दृष्टि से भी सर्वोत्कृष्ट माना गया है कि बहुना, इनके प्रत्येक सर्ग प्रासादिक भाषा-शैली तथा भाव व्यञ्जना एवं रसानुप्राणित उर्वरक कल्पनाओं की दृष्टि से ‘रघुवंश’ और ‘कुमार संभव’ को अनुपम महाकाव्य सिद्ध करते हैं। अतएव इनका पठन-पाठन भी संस्कृत समाज में विशेष समादर से किया जाता है। महाकाव्यों की उक्त विशेषताओं को ही देखकर विभिन्न विश्वविद्यालयों के द्वारा स्नातक स्तरीय परीक्षाओं में इन्हें पाठ्य-ग्रन्थ के रूप में निर्धारित किया जाता है।

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