Mrichchatikam

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महाकविशूद्रककविप्रणीतं मृच्छकटिकम्

‘विमला’ – संस्कृत-हिन्दीव्याख्योपेतम्

दार्शनिक दृष्टि से नामों में अन्वर्थकता का अभाव सकता है। साहित्यिक दृष्टि नामों में सार्थकता मानती है। 

‘नाम्ना कर्मानुरूपेण ज्ञायते गुणदोषयोः

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महाकविशूद्रककविप्रणीतं मृच्छकटिकम्

‘विमला’ – संस्कृत-हिन्दीव्याख्योपेतम्

  • दार्शनिक दृष्टि से नामों में अन्वर्थकता का अभाव सकता है। साहित्यिक दृष्टि नामों में सार्थकता मानती है। इस नामौचित्य के सम्बन्ध में क्षेमेन्द्र की ‘औचित्यविचारचर्चा’ में लिखा है

‘नाम्ना कर्मानुरूपेण ज्ञायते गुणदोषयोः

  • ऐसी स्थिति में किसी नाटक के प्रकृत अर्थ के अनुकूल नाम चुनने में कवि की कला परिलक्षित होती है। प्रस्तुत अर्थ के अनुरूप नाम के सुनते ही सहृदयों के हृदय विकसित हो जाते हैं। महापात्र विश्वनाथ की दृष्टि में किसी भी नाटक का नाम तो उसके गर्भित अर्थ का ही प्रकाशक होना चाहिए
  • ‘नामकार्य नाटकस्य गर्भितार्थप्रकाशकम् । यदि इसे हम प्रकरण मानते हैं, तब भी ‘मालतीमाधव’ की तरह इसका भी नामकरण नायिका नायक के नाम पर आधारित ‘वसन्तसेनाचारुदत्तम् होना चाहिए था। क्योंकि साहित्यदर्पण के पष्ठ परिच्छेद में लिखा है ‘नायिकानायकाख्यानात् संज्ञाप्रकरणादिषु’ ।
  • तो फिर इस धूतंसंकुल प्रस्तुत प्रकरण का शीर्षक ‘मृच्छकटिकम्’ अर्थात् ‘मिट्टी की गाड़ी’ की अन्वर्थकता क्या है ? सर्वप्रथम यह प्रकरण संस्कृत रूपकों में घटनाचक्र की दृष्टि से अपूर्व एवं अतुलनीय है। घटनाचक्र को गत्यात्म कता इस रूपक की अपनी प्रमुख विशेषता है और यह नाम प्रकरण की एक घटना से सम्बद्ध है। नायक चारुदत्त का पुत्र रोहसेन मिट्टी की गाड़ी से खेलना बन्द कर देता है। वह भी अपने प्रतिवेशी सम्पन्न शिशु की तरह सोने की गाड़ी से खेलना चाहता है। नहीं मिलने पर उसके लिए रोता है।
  • रोते रोते गृहपरिचारिका रदनिका के साथ वसन्तसेना के पास तक पहुँच जाता है। कारण जानने के बाद बसन्तसेना उसकी मिट्टी की गाड़ी को अपने सोने के गहनों से भर देती है। ये गहने ही बाद में विद्वयक के पास पकड़े जाते हैं और बादत्त के द्वारा स्वर्णाभूषण के लिए बसन्तसेना की हत्या किये जाने के प्रमाण बन जाते हैं।

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