Nalchampu

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नलचम्पू:

व्याख्याकार: तारिणीश झा

(अन्वय संस्कृत व्याख्या हिंदी अनुवाद टिप्पणी विशद भूमिका सहित)

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Description

नलचम्पू:

व्याख्याकार: तारिणीश झा

(अन्वय संस्कृत व्याख्या हिंदी अनुवाद टिप्पणी विशद भूमिका सहित)

  • ‘चम्पयति योजयति गद्यपद्ये इति चम्पू:’ इस व्युत्पत्ति के अनुसार गद्य और पद्म मिश्रित रचना को चम्पू कहते हैं। जैसा कि दण्डी ने लिखा है— ‘गद्यपद्यमयी काचिच्चम्पूरित्यभिधीयते’ ( काव्यादर्श १, ३१) इसी बात को साहित्यदर्पणकार ने भी पुष्ट किया है- ‘गद्यपद्यमयं काव्यं चम्पूरित्यभिधीयते
  • प्रर्थात् जिस काव्य में गद्य-पद्य का संयुक्त प्रयोग किया जाता है उसे चम्पू काव्य कहते हैं । इस प्रकार चम्पू-काव्य में गद्य एवं पद्य का मिश्रण रहता है प्रोर यों तो वासवदत्ता, हर्षचरित तथा कादम्बरी आदि गद्य-कृतियों में भी यत्र तत्र पद्य प्रयुक्त हुए हैं, पर प्रधानतया उन्हें गद्य साहित्य या गद्य-काव्य के हो अन्तर्गत रखा जाता है।
  • इसी प्रकार नीति-कथामों में भी गद्य-पद्य का सम्मि श्रण दीख पड़ता है, किन्तु उनमें पद्यों का प्रयोग किसी विशेष प्रयोजन से ही किया जाता है और उनके पद्य या तो उन क्याओं से प्राप्त होने वाली शिक्षा के रूप में हैं या वह किसी विशेष कथन की पुष्टि में प्रमाण रूप में उद्धृत हैं।
  • इस प्रकार साहित्य की उन अन्य विधामों से, जिनमें कि गद्य-पद्य का मिश्रण पाया जाता है, चम्पू काव्य की पृथक्ता स्पष्ट करते समय विचारक यह म व्यक्त करते हैं कि चम्पू में गद्य-पद्य का समान रूप से व्यवहार होता है और उसके पद्य किसी प्रयोजन विशेष से प्रयुक्त नहीं होते, बल्कि वह तो उसकी कथा के ही उसी प्रकार अंगभूत होते हैं जिस प्रकार उसके गद्य भाग ।
  • चम्मू रामायण के रचयिता भोज ने कर भी है कि चम्पू में गद्य और पद्य का वही पारस्परिक सम्बन्ध है जो संगीत में गीत झोर वाद्य का

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