Patanjal-Yogdarshanam
₹300.00
पातञ्जलयोगदर्शनम्
व्याख्याकार: डॉ. सुरेशचन्द्र श्रीवास्तव
महर्षिपतञ्जलिमुनिप्रणीतम्
व्यासभाष्य-संवलितम् – तच्च योगसिद्धि-हिन्दीव्याख्योपेतम्
Description
पातञ्जलयोगदर्शनम्
व्याख्याकार: डॉ. सुरेशचन्द्र श्रीवास्तव
महर्षिपतञ्जलिमुनिप्रणीतम्
व्यासभाष्य-संवलितम् – तच्च योगसिद्धि-हिन्दीव्याख्योपेतम्
- विविध भारतीय दर्शनों के बीच योगदर्शन का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
- महाभारत में श्रीशुकदेवजी ने ठीक ही कहा है कि ‘न तु योगमृते प्राप्तुं शक्या सा परमा गतिः ।’
- यह एक सुविदित तथ्य है कि भारतीय दर्शन का चरम लक्ष्य प्राणियों को त्रिविध दुःखों से सदा के लिये छुटकारा दिलाना ही है। दुःखों की यह शाश्वतिक निवृत्ति मुक्ति, मोक्ष, कैवल्य, अपवर्ग, निःश्रेयस् निर्वाण और परमपद इत्यादि पदों से अभिहित की गयी है।
- इसकी सिद्धि के लिये प्राय: सभी भारतीय दर्शन ( चार्वाकदर्शन और मीमांसा के अतिरिक्त ) पदार्थों के शुद्ध ज्ञान को किसी न किसी प्रकार से अपरिहार्य उपाय मानते हैं ।
- श्रुतियों ने भी ‘ऋते ज्ञानान्न मुक्तिः’ का तथ्य स्वीकृत किया है। पदार्थों के इस शुद्धज्ञान को विभिन्न दर्शनों में तत्त्वज्ञान, सम्यग्ज्ञान, तत्त्वसाक्षात्कार, परमज्ञान, विज्ञान, परप्रसंस्थान और विवेकख्याति इत्यादि नाम दिये गये हैं। इस शुद्ध ज्ञान का एक रूप तो वह है, जो बुद्धि की शुद्ध सात्त्विक वृत्ति के द्वारा प्राप्त किया जाता है और दूसरा तथा उत्तम रूप वह है, जो वृत्तिहीन स्थिति में आत्मा का अपरोक्ष अनुभव होता है ।
- इनमें से प्रथम प्रकार का तत्त्वज्ञान ‘सांख्ययोग’ में ‘विवेक ख्याति’ के नाम से प्रसिद्ध है और द्वितीय प्रकार का तत्त्वदर्शन योगशास्त्र में ‘असम्प्रज्ञात योग’ के नाम से विख्यात है। ईश्वरकृष्ण का सांख्यशास्त्र इस अपरोक्ष पुरुषानुभूति के विषय में सर्वया मौन है।
- न्याय, वैशेषिक और मीमांसा दर्शन भी वृत्तिज्ञान से परे किसी अपरोक्ष उत्तम ज्ञान की कल्पना नहीं कर पाये। अद्वैतवेदान्तदर्शन अलबत्ता इसी अपरोक्षानुभूतिरूप ज्ञान को ही मोक्ष का वास्तविक हेतु स्वीकार करता है। गौडपाद ने इस अपरोक्षानुभव को ही ‘अस्पर्शयोग’ की संज्ञा प्रदान की है।
Additional information
Weight | 544 g |
---|
Reviews
There are no reviews yet.