Sankhyakarika
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साङ्ख्यकारिका
हिन्दी व्याख्याकरः सम्पादक
डॉ. सन्तनारायण श्रीवास्तव
ईश्वरकृष्णप्रणीता
वाचस्पतिमिश्रप्रणीतसाङ्ख्यतत्त्वकौमुदीसहिता
तत्त्वविमर्शाख्यहिन्दीव्याख्यासंवलिता
Description
साङ्ख्यकारिका
हिन्दी व्याख्याकरः सम्पादक
डॉ. सन्तनारायण श्रीवास्तव
ईश्वरकृष्णप्रणीता
वाचस्पतिमिश्रप्रणीतसाङ्ख्यतत्त्वकौमुदीसहिता
तत्त्वविमर्शाख्यहिन्दीव्याख्यासंवलिता
- जैसे दिनके बाद रात और शतके बाद दिन आता है, जैसे छ. तुओं का एक चक्र पूरा होनेपर दूसरा चक्र उसी क्रमसे आरम्भ हो जाता है, जैसे जन्मके पश्चात मरण और मरणके पश्चात जन्म अवश्यम्भावी है, और जिस प्रकार काल भगवानक इस अनादि अनन्त और अनवरत प्रवाहमे अहोरात्र समाह पक्ष मास ऋतु अयन वत्सर युग मन्वन्तर और कल्प चक्राकार आवर्तित हो रहे हैं, उसी प्रकार सृष्टिका लास्य और प्रलयका ताण्डव उस जगन्नियामक लीलाधरकी लीलामे नियमित रूपसे नियमित अन्तरालपर होता रहता है।
- सृष्टिका समय आनेपर प्रलयकालीन एकार्णवके सलिलसे जब चराचर जगतकी सृष्टि होती है, तब उसके साथ ही पूर्वकल्पोकी अनादि परम्परासे चला आ रहा सम्पूर्ण सञ्चित ज्ञान भी ऋषियोक माध्यमसे आविर्भूत हो जाता है, क्योंकि ज्ञान नित्य और अविनश्वर है। ज्ञानकी मृत्यु कल्पनासे बहिर्भूत है। मृत्युका ज्ञान (अनुभव) तो सम्भव है, किन्तु ज्ञानकी मृत्यु अकल्पनीय है।
- यदि ज्ञानको मृत्यु मानी जाय, तो उसका प्रमाणित करनेवाला कोई साक्षी चाहिए, क्योंकि अमाक्षिक मृत्यु अप्रामाणिक होगी। और यदि साक्षी है, तो चेतन (ज्ञानवान्) साक्षीके रहते हुए ज्ञानकी मृत्यु कैसे मानी जा सकती है? संस्कृतम ज्ञान वतना अनुभव और सवित् समानार्थक है। भारतीय चिन्तनसरणिमे कोई भी ज्ञान नवीन अर्थात् उत्पाद्य नहीं है, और नित्यज्ञानका कभी अभाव नहीं हो सकता हैं। “नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः” कहकर स्वयं भगवानने इसपर अपनी मोहर लगा दी है। समस्त ज्ञान बीजरूपसे उन वेदोंमें उपनिबद्ध है, जो वर्तमान सृष्टि (कल्प) के आरम्भम मन्त्रद्रष्टा ऋषियोंके माध्यमसे अभिव्यक्त हुए हैं।
- अतः स्पष्ट है कि ज्ञानको कालकी सीमामे बांधना और उसका इतिहास लिखना व्यर्थ प्रयास है। उसका इतिहासलेखन उस अवैज्ञानिक विकासवादी विचारधाराका प्रभाव है जो ज्ञानको उत्पन्न होनेवाला और निरन्तर विकासशील मानती है। ज्ञान वस्तुतः उपयोगकी वस्तु है, जीवनमे उतारकर अपनेको कृतार्थ करनेका साधन है। उसका इतिहास लिखने में कोई स्वाग्ग्य नहीं है।
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