Sanskrit Sahitya Ka Samikshatmak Itihas

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संस्कृत साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास

डॉ. कपिलदेव द्धिवेदी आचार्य

‘संस्कृत साहित्य का इतिहास’ साहित्य के सुधी पाठकों तथा समीक्षकों के समक्ष प्रस्तुत है।

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संस्कृत साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास

डॉ. कपिलदेव द्धिवेदी आचार्य

  • ‘संस्कृत साहित्य का इतिहास’ साहित्य के सुधी पाठकों तथा समीक्षकों के समक्ष प्रस्तुत है। इस विषय के अनेक ग्रन्थों के उपलब्ध रहने पर भी इसकी आवश्यकता है, यही जानकर इसकी प्रस्तुति की गयी है। इसमें मुख्यतः संस्कृत भाषा में रचित साहित्यिक कृतियों तथा उनके मूल्याङ्कन का लघु प्रयास है, तथापि पृष्ठभूमि में वैदिक साहित्य तथा अन्त में कतिपय शास्त्रों के अमूल्य ग्रन्थों की भी परिक्रमा की गयी है। समासतः कह सकते हैं कि तन्त्र और दर्शन को छोड़कर प्रायः समस्त संस्कृत वाङ्मय के ग्रन्थरत्नों का उनकी उपयोगिता तथा लोकप्रियता की दृष्टि से इसमें परिचय दिया गया है।
  • इसकी सीमाओं का निर्देश आवश्यक है। साहित्यिक कृतियों पर ईषत् विस्तार से समीक्षा की गयी है तो शास्त्रीय रचनाओं के विस्तृत परिचय का उपक्रम है; कुछ कृतियों का संक्षिप्त परिचय है। आधुनिक कृतियों को भी अस्पृश्य नहीं मानकर यत्र तत्र सूचनाएँ प्रस्तुत की गयी हैं तथापि उनके लेखकों का परिचय देना सम्भव नहीं हो सका है। ‘आयाम गम्भीरता का सबसे बड़ा शत्रु होता है’ – इस कथन के कारण ग्रन्थ की परिधि का आयाम गम्भीर समालोचना से दूर रहने में प्रधान हेतु रहा है।
  • राष्ट्रीय शैक्षणिक शोध तथा प्रशिक्षण परिषद्, नयी दिल्ली द्वारा प्रकाशित ‘संस्कृत साहित्य-परिचय’ नामक लघुकाय पुस्तिका की प्रस्तुति में इन पंक्तियों के लेखक का भी सक्रिय सहयोग रहा था। उसी समय से कुछ प्रतिष्ठित प्रकाशकों ने उसी ढाँचे पर एक विस्तृत पुस्तक की रचना का अनुरोध मुझसे किया था किन्तु अन्य कार्यों की प्राथमिकता के कारण यह तत्काल सम्भव नहीं हो सका। इधर दो-तीन वर्षों में छात्रों का अनुरोध इतना बढ़ गया कि इसे बहुत दिनों तक टालना सम्भव नहीं लगा। अक्टूबर, १९९४ ई० से आरम्भ करके नवम्बर १९९७ ई० में मैंने इसकी पाण्डुलिपि पूरी कर ली। लेखन के साथ-साथ अक्षर-संयोजन (कम्पोजिंग) का कार्य भी होता गया, जिससे इसके प्रकाशन में त्वरा हुई है।

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