Shishupalvadham

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शिशुपालवधम् 
व्याख्याकार- डॉ. आघाप्रसाद मिश्र 

(अन्वय हिन्दी – अनुवाद मल्लिनाथी व्याकरण कोष अलंकार सहित)

 

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Description

शिशुपालवधम् 
व्याख्याकार- डॉ. आघाप्रसाद मिश्र 

(अन्वय हिन्दी – अनुवाद मल्लिनाथी व्याकरण कोष अलंकार सहित)

  • भारवि की अलङ्कार-प्रधान शैली के अनन्य उपासक एवं उनके अनुकरणकर्ता महाकवि माघ संस्कृत की कवि-परम्परा में अनन्य स्थान के अधिकारी हैं। ‘उपमा कालिदासस्य भारवेरर्थगौरवम् । दण्डिनः (नैषधे) पदलालित्यं माघे सन्ति त्रयो गुणाः ।।
  • ‘ इत्यादि सर्व-विदित सूक्ति में अत्युक्ति एवं माघ के प्रति पक्षपात की कुछ गन्ध सूक्ष्म समालोचक को भले ही मिले, किन्तु वह भी इस बात को मानने से इनकार नहीं करेगा कि माघ के काव्य में उष्कृष्ट से उत्कृष्टतर उपमायें, गुरु से गुरुतर एवं सूक्ष्म से सूक्ष्मतर मनोहारी अर्थ तथा मधुर से मधुरतर ललित पदों का सन्निवेश- सभी भरपूर मिलते हैं। इनका एकमात्र उपलब्ध शिशुपालवध नामक महाकाव्य संस्कृत साहित्य की ‘बृहत्त्रयी’ में अन्यतम है।
  • वे अपने आदर्श भारवि का भी अतिक्रमण कर गये हैं, जैसा हरिहर ने अपनी सुभाषितावली में लिखा है ‘नैतच्चित्रमहं मन्ये माघमासाद्य यन्मुहुः ।
  • प्रौढतातिप्रसिद्धापि भारवेरवसीदति।।’ राजशेखर-सदृश महाकवि एवं सूक्ष्म समालोचक की माघ-विषयक उक्ति तो सर्व प्रसिद्ध ही है- ‘कृत्स्नप्रबोधकृद् वाणी भारवेरिव भारवे: । माघेनेव च माघेन कम्पः कस्य न जायते।।’ धनपाल ने भी तिलकमञ्जरी में माघ के पद-बन्ध की बड़ी प्रशंसा की है-‘माघेन विघ्नितोत्साहा न सहन्ते पदक्रमम् । स्मरन्तो भारवेरेव कवयः कपयो यथा ।।’ माघ कवि के शिशुपालवध काव्य का शब्द भण्डार अद्भुत है, इसी से तो कहा गया है-‘नवसर्गगते माघे नवशब्दो न विद्यते।

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